एक युवा जिसने युवाओं की सोच बदल दी।
एक युवा संन्यासी के रूप में भारतीय संस्कृति की सुगंध विदेशों में बिखेरनें वाले स्वामी विवेकानंद साहित्य, दर्शन और इतिहास के प्रकाण्ड विव्दान थे। स्वामी विवेकानंद – Swami Vivekananda ने ‘योग’, ‘राजयोग’ तथा ‘ज्ञानयोग’ जैसे ग्रंथों की रचना करके युवा जगत को एक नई राह दिखाई है जिसका प्रभाव जनमानस पर युगों-युगों तक छाया रहेगा। कन्याकुमारी में निर्मित उनका स्मारक आज भी स्वामी विवेकानंद – Swami Vivekananda महानता की कहानी बताता हैl
“संभव की सीमा जानने का केवल एक ही तरीका है असंभव से भी आगे निकल जाना।“
ऐसी सोच वाले व्यक्तित्व थे Swami Vivekananda – स्वामी विवेकानंद। जिन्होनें अध्यात्मिक, धार्मिक ज्ञान के बल पर समस्त मानव जीवन को अपनी रचनाओं के माध्यम से सीख दी वे हमेशा कर्म पर भरोसा रखने वाले महापुरुष थे। Swami Vivekananda – स्वामी विवेकानंद का मानना था कि अपने लक्ष्य को पाने के लिए तब तक कोशिश करते रहना चाहिए जब तक की लक्ष्य हासिल नहीं हो जाए।
तेजस्वी प्रतिभा वाले महापुरुष स्वामी विवेकानंद के विचार काफी प्रभावित करने वाले थे जिसे अगर कोई अपनी जिंदगी में लागू कर ले तो सफलता जरूर हासिल होती है – यही नहीं विवेकानंद जी ने अपने अध्यात्म से प्राप्त विचारों से भी लोगों को प्रेरित किया जिसमें से एक विचार इस प्रकार है –
‘उठो जागो, और तब तक नहीं रुको जब तक लक्ष्य ना प्राप्त हो’ ।।
स्वामी विवेकानंद ने अपने आध्यात्मिक चिंतन और दर्शन से न सिर्फ लोगों को प्रेरणा दी है बल्कि भारत को पूरे विश्व में गौरान्वित किया है।
पूरा नाम | नरेंद्रनाथ विश्वनाथ दत्त |
जन्म | 12 जनवरी 1863 |
जन्मस्थान | कलकत्ता (पं. बंगाल) |
पिता | विश्वनाथ दत्त |
माता | भुवनेश्वरी देवी |
घरेलू नाम | नरेन्द्र और नरेन |
मठवासी बनने के बाद नाम | स्वामी विवेकानंद |
भाई-बहन | 9 |
गुरु का नाम | रामकृष्ण परमहंस |
शिक्षा | 1884 मे बी. ए. परीक्षा उत्तीर्ण |
विवाह | विवाह नहीं किया |
संस्थापक | रामकृष्ण मठ, रामकृष्ण मिशन |
फिलोसिफी | आधुनिक वेदांत, राज योग |
साहत्यिक कार्य | राज योग, कर्म योग, भक्ति योग, मेरे गुरु, अल्मोड़ा से कोलंबो तक दिए गए व्याख्यान |
अन्य महत्वपूर्ण काम | न्यूयार्क में वेदांत सिटी की स्थापना, कैलिफोर्निया में शांति आश्रम और भारत में अल्मोड़ा के पास ”अद्धैत आश्रम” की स्थापना। |
कथन | “उठो, जागो और तब तक नहीं रुको जब तक लक्ष्य प्राप्त न हो जाये” |
मृत्यु तिथि | 4 जुलाई, 1902 |
मृत्यु स्थान | बेलूर, पश्चिम बंगाल, भारतस्वामी विवेकानंद जी का जीवन परिचय – Swami Vivekananda History
स्वामी विवेकानंद एक ऐसे महापुरूष थे जिनके उच्च विचारों, अध्यात्मिक ज्ञान, सांस्कृतिक अनुभव से हर कोई प्रभावित है। जिन्होने हर किसी पर अपनी एक अदभुद छाप छोड़ी है। स्वामी विवेकानंद का जीवन हर किसी के जीवन में नई ऊर्जा भरता है और आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है। स्वामी विवेकानंद प्रतिभाशील महापुरुष थे जिन्हें वेदों का पूर्ण ज्ञान था। विवेकानंद जी दूरदर्शी सोच के व्यक्ति थे जिन्होनें न सिर्फ भारत के विकास के लिए काम किया बल्कि लोगों को जीवन जीने की कला भी सिखाई।
स्वामी विवेकानंद भारत में हिंदु धर्म को बढ़ाने में उनकी मुख्य भूमिका रही और भारत को औपनिवेशक बनाने में उनका मुख्य सहयोग रहा।
स्वामी विवेकानंद दयालु स्वभाव के व्यक्ति थे जो कि न सिर्फ मानव बल्कि जीव-जंतु को भी इस भावना से देखते थे। वे हमेशा भाई-चारा, प्रेम की शिक्षा देते थे उनका मानना था कि प्रेम, भाई-चारे और सदभाव से जिंदगी आसानी से काटी जा सकती है और जीवन के हर संघर्ष से आसानी से निपटा जा सकता है। वे आत्म सम्मान करने वाले व्यक्ति थे उनका मानना था कि –
स्वामी विवेकानंद के अनमोल विचारों ने उनको महान पुरुष बनाया उनका अध्यात्म ज्ञान, धर्म, ऊर्जा, समाज, संस्कृति, देश प्रेम, परोपकार, सदाचार, आत्म सम्मान के समन्वय काफी मजबूत रहा वहीं ऐसा उदाहरण कम ही देखने को मिलता है इतने गुणों से धनी व्यक्ति ने भारत भूमि मे जन्म लेना भारत को पवित्र और गौरान्वित करना है ।
स्वामी विवेकानंद ने रामकृष्ण मठ और रामकृष्ण मिशन की स्थापना की, जो आज भी भारत में सफलता पूर्वक चल रहा है। उन्हें प्रमुख रूप से उनके भाषण की शुरुवात “मेरे अमेरिकी भाइयो और बहनों” के साथ करने के लिए जाना जाता है। जो शिकागो विश्व धर्म सम्मलेन में उन्होंने ने हिंदु धर्म की पहचान कराते हुए कहे थे।
स्वामी विवेकानन्द का शुरुआती जीवन – Life History of Swami Vivekananda – Full Details Story
Swami Vivekananda Date of Birth – महापुरुष स्वामी विवेकानन्द का जन्म 12 जनवरी 1863 को हुआ था। विलक्षण प्रतिभा के धनी व्यक्ति ने कोलकाता में जन्म लेकर वहां की जन्मस्थली को पवित्र कर दिया। उनका असली नाम नरेन्द्रनाथ दत्ता था लेकिन बचपन में प्यार से सब उन्हें नरेन्द्र नाम से पुकारते थे।
स्वामी विवेकानंद के पिता का नाम विश्वनाथ दत्त था जो कि उस समय कोलकाता हाईकोर्ट के प्रतिष्ठित और सफल वकील थी जिनकी वकालत के काफी चर्चा हुआ करती थी इसके साथ ही उनकी अंग्रेजी और फारसी भाषा में भी अच्छी पकड़ थी।
वहीं विवेकानंद जी की माता का नाम भुवनेश्वरी देवी था जो कि धार्मिक विचारों की महिला थी वे भी विलक्षण काफी प्रतिभावान महिला थी जिन्होनें धार्मिक ग्रंथों जैसे रामायण और महाभारत में काफी अच्छा ज्ञान प्राप्त किया था। इसके साथ ही वे प्रतिभाशाली और बुद्धिमानी महिला थी जिन्हें अंग्रेजी भाषा की भी काफी अच्छी समझ थी।
वहीं अपनी मां की छत्रसाया का स्वामी विवेकानंद पर इतना गहरा प्रभाव पड़ा वे घर में ही ध्यान में तल्लीन हो जाया करते थे इसके साथ ही उनहोनें अपनी मां से भी शिक्षा प्राप्त की थी। इसके साथ ही स्वामी विवेकानंद पर अपने माता-पिता के गुणों का गहरा प्रभाव पड़ा और उन्हें अपने जीवन में अपने घर से ही आगे बढ़ने की प्रेरणा मिली।
स्वामी विवेकानंद के माता और पिता के अच्छे संस्कारो और अच्छी परवरिश के कारण स्वामीजी के जीवन को एक अच्छा आकार और एक उच्चकोटि की सोच मिली।
कहा जाता है कि नरेन्द्र नाथ बचपन से ही नटखट और काफी तेज बुद्धि के व्यक्ति थे वे अपनी प्रतिभा के इतने प्रखर थे कि एक बार जो भी उनके नजर के सामने से गुजर जाता था वे कभी भूलते नहीं थे और दोबारा उन्हें कभी उस चीज को फिर से पढ़ने की जरूरत भी नहीं पढ़ती थी।
उनकी माता हमेशा कहती थी की, “मैंने शिवजी से एक पुत्र की प्रार्थना की थी, और उन्होंने तो मुझे एक शैतान ही दे दिया”।
युवा दिनों से ही उनमे आध्यात्मिकता के क्षेत्र में रूचि थी, वे हमेशा भगवान की तस्वीरों जैसे शिव, राम और सीता के सामने ध्यान लगाकर साधना करते थे। साधुओ और सन्यासियों की बाते उन्हें हमेशा प्रेरित करती रही।
वहीं आगे जाकर यही नरेन्द्र नाथ दुनियाभर में ध्यान, अध्यात्म, राष्ट्रवाद हिन्दू धर्म, और संस्कृति का वाहक बने और स्वामी विवेकानंद के नाम से प्रसिद्ध हो गए।
स्वामी विवेकानंद जी की शिक्षा – Swami Vivekananda Education
बालक नरेद्र अपने विद्यार्थी जीवन में जॉन स्टुअर्ट, हर्बर्ट स्पेंसर और ह्यूम के विचारों से काफी प्रभावित थे उन्होनें इनके विचारों का गहनता से अध्ययन किया और अपने विचारों से लोगों में नई सोच का प्रवाह किया। इसी दौरान विवेकानंद जी का झुकाव ब्रह्म समाज के प्रति हुआ, सत्य जानने की जिज्ञासा से वे ब्रह्म समाज के नेता महर्षि देवेन्द्र नाथ ठाकुर के संपर्क में भी आए।
रामकृष्ण परमहंस के साथ विवेकानंद जी का रिश्ता – Ramakrishna Paramahamsa and Swami Vivekananda![]()
आपको बता दें कि स्वामी विवेकानंद बचपन से ही बड़ी जिज्ञासु प्रवृत्ति के थे यही वजह है कि उन्होनें एक बार महर्षि देवेन्द्र नाथ से सवाल पूछा था कि ‘क्या आपने ईश्वर को देखा है?’ नरेन्द्र के इस सवाल से महर्षि आश्चर्य में पड़ गए थे और उन्होनें इस जिज्ञासा को शांत करने के लिए विवेकानंद जी को रामकृष्ण परमहंस के पास जाने की सलाह दी जिसके बाद उन्होनें उनके अपना गुरु मान लिया और उन्हीं के बताए गए मार्ग पर आगे बढ़ते चले गए।
इस दौरान विवेकानंद जी रामकृष्ण परमहंस से इतने प्रभावित हुए कि उनके मन में अपने गुरु के प्रति कर्तव्यनिष्ठा और श्रद्धा बढ़ती चली गई। 1885 में रामकृष्ण परमहंस कैंसर से पीड़ित हो गए जिसके बाद विवेकानंद जी ने अपने गुरु की काफी सेवा भी की। इस तरह गुरु और शिष्य के बीच का रिश्ता मजबूत होता चला गया।
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